शुक्रिया सरकार
ग़ुरबत के दिन गए, अजब हुआ चमत्कार
एहसास-ए-अमीरी का चढ़ने लगा खुमार
बत्तीस रुपये से अपनी तबियत हरी हुयी
तहे दिल से आपका, शुक्रिया सरकार
रोटी, कपड़ा, मकाँ मयस्सर नहीं तो क्या
वो तो मिल गया जिसके थे तलबगार
गर्दन ऊँची, सीना चौड़ा औ' बुलंद आवाज़
जलवे हमारे देखिये अब ऑंखें फाड़- फाड़
खिलखिलाकर हंसो उनपर जो गरीब हैं
ज़िन्दगी है जिनकी कुछ और जार-जार
तहे दिल से आपका, शुक्रिया सरकार....
Satyawachan sirji !!!
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