दिवाली फिर कभी मनाएंगे
हालात की संजीदगी किस किस को बताएँगे
अश्क आके खुद अपनी दास्तां सुनायेंगे
रह के सोहबत में ग़म-ए-ज़िन्दगी जानो हमदम
तुम भी कहोगे कि दिवाली फिर कभी मनाएंगे
सियासत की चक्की ने पीस के रख दिया है हमें
तंग हाथों से कैसे दिए हम जलाएंगे
आँखों में चमक लेके हम फिरते हैं दर बदर
सच ये है कि हर दर पे ठोकरें खायेंगे
वक़्त आ गया आगाज़-ए-जंग का साथी
जो हमसे खेलेंगे, खुद मुंह कि अपनी खायेंगे
तुम भी कहोगे दिवाली फिर कभी मनाएंगे
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wah ustad wah..................
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