Tuesday, October 25, 2011

दिवाली फिर कभी मनाएंगे


दिवाली फिर कभी मनाएंगे 
हालात की संजीदगी किस किस को बताएँगे 
अश्क आके खुद अपनी दास्तां सुनायेंगे 
रह के सोहबत में ग़म-ए-ज़िन्दगी जानो हमदम 
तुम भी कहोगे कि दिवाली फिर कभी मनाएंगे 

सियासत की चक्की ने पीस के रख दिया है हमें 
तंग हाथों से कैसे दिए हम जलाएंगे 

आँखों में चमक लेके हम फिरते हैं दर बदर 
सच ये है कि हर दर पे ठोकरें खायेंगे 

वक़्त आ गया आगाज़-ए-जंग का साथी
जो हमसे खेलेंगे, खुद मुंह कि अपनी खायेंगे 

तुम भी कहोगे दिवाली फिर कभी मनाएंगे 
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